कथा वाचक आचार्य श्री विपिन कृष्ण काण्डपाल जी- एक संक्षिप्त परिचय
यह भारत भूमि प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों, तपसियों और महान विभूतियों की भूमि रही है । जब-जब भी इस धरती पर किसी प्रकार का अनाचार या अत्याचार बढ़ा या धर्म की हानि हुई है तब तब भगवत कृपा से किसी न किसी पुण्य आत्मा ने इस पृथ्वी पर जन्म लेकर समाज में नई चेतना जागृत करने के लिये, सुसंस्कारित और सभ्य समाज बनाने के लिये, सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये, विश्व में धर्म और आध्यात्म के माध्यम से शान्ति, भक्ति व ज्ञान की ज्योति जलाई है जिससे मानव जीवन का कल्याण हुआ है। जब बात बद्री-केदार देवभूमि उत्तराखंड की होती है तो इसके बारे में जितनी चर्चा की जाय उतनी ही कम है। हमारे धर्म शास्त्र पुराण कहते हैं कि यह हिमालय भूमि उत्तराखंड देवताओं की निवास स्थली रही है। इसके कण-कण, पग-पग पर देवता लोग निवास करते हैं । यह उत्तराखण्ड भूमि भगवान शिव की तपस्थली रही है । ऐसी मान्यता है कि भगवान् वेद व्यास ने इसी भूमि में विभिन् पुराणों की रचना की है, माँ भगवती गंगा/यमुना का उद्गम स्थान होने का गौरव भी इसी उत्तराखण्ड की भूमि को प्राप्त हुआ है । इसी बद्री-केदार देवभूमि उत्तराखंड के कथा वाचकों की सूची में आचार्य विपिन कृष्ण काण्डपाल जी का नाम आज एक जाना-पहिचाना नाम बन चुका है । श्रीमदभागवत महापुराण, श्री शिव महापुराण और देवी भागवत महापुराण के मर्मग्य कथा वाचक आचार्य श्री विपिन कृष्ण काण्डपाल जी का जन्म 14 अक्टूबर 1985 को गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिल्ले के अंतर्गत दशज्यूला पट्टी के ग्राम बैंजी काण्डई ग्राम में पंडित उमाशंकर शास्त्री/श्रीमती शशि देवी काण्डपाल जी के यहाँ हुआ ।