An Eminent Katha Orator Acharya Vipin Krishna Kandpal Ji: A Brief Introduction
From time immemorial, India has been the land of sages and seers who practiced austerity and ascetic and meditated for several years. It is believed that whenever the cup of evil brimmed on the earth, a divine intervention is felt that not only conquer the dark forces but also bring consciousness; help in creating a the lamp of peace, devotion and wisdom that has in return helped in the overall development of human.
When it comes to the land of Lord Badri and Kedar, Uttarakhand, lauding for which even millions of times is just not enough. It is mentioned in our religious scriptures that this Himlayan state has been the earthly abode of Gods. It is said in every part of Uttarakhand the entity of the divine, the Supreme can be felt. This holy land was the meditation centre for Lord Shiva. Also, Ved Vyas chose Uttarakhand to be the place to compose many of his eminent works. The state has also been blessed as the progenitor of sacred rivers like Yamuna and Ganga. In this land of Badri and Kedar, several orators have been enlisted, amongst which the name of Acharya Vipin Krishna Kandpal is well known. The orator of Shrimadbhagwat Mahapurana, Sri Shiv Mahapurana and Devi Bhagwat Mahapurana, Acharya Vipin Krishna Kandpal was born to Pandit Umashankar Shastri and Shashi Devi in 1985 in the village of Dashjyula Patti, Bainji Kandai in the Rudraprayag district of Garhwal region in Uttarakhand.
Acharya Ji received his primary education in the school located in the native village. After graduating high school with excellent grades, Acharya felt a strong inclination towards Ved-Puranas, thus he decided to further learn about these religious scriptures. Under the excellent guidance of Jagadguru Jyotishpeetha Shankarcharya Sri Madhavananda Ji Maharaj, Acharaya Kandpal studied Sanskrit, Astrology, Karmakanda and Purana in his school at Ludhiana Punjab. Thereafter, Acharaya Ji obtained his post graduate degree in Sanskrit grammar from Shardadevi Sanskrit Vidyapeetha (Recognized by Sampoornanda Sanskrit University) in Delhi.
By being born in the Brahmin family and inherited moral values, Ved-Puranas always beckoned Acharya Kandpal Ji. From his early age, he began to study the Shrimadbhagwat Mahapurana, Sri Shiv Mahapurana and Devi Bhagwat Mahapurana under the guidance of his uncle Sri Bachchiram Kandpal Ji who himself was an eminent orator. At the ripe age of 18 years, Acharya Kandpal Ji built a strong grip as an effective orator and since then he has been to 150 small and big cities of India for elocutions of Bhagwat.
The sole and prime motive of Acharya Kandpal Ji is to offer the vedic and ancient teachings of the Hindu religion. Along with it, he likes to inspire people to eradicate the unlawful practices in the society. In his speeches, Acharya Ji has from time to time discussed vital social issues like ‘Beti Bachao Beti Padhao’, ‘Jalsanchay Jal Sarvadhan’, ‘Gau Sewa’, ‘Environment Conservation’, ‘Serving Parents’and ‘Attending to the needs of Poor’. Acharya Ji is of the thought that in order to make our coming generation free from corruption, rapes, fears, diseases and other evil practices then we all need to return to our Vedas, Puranas and Upanishads.
If you wish to invite Acharya Kandpal Ji for the recital of Shrimadbhagwat Mahapurana, Sri Shiv Mahapurana and Devi Bhagwat Mahapurana and performance of Yagya for some noble cause, kindly contact on the given numbers.
कथा वाचक आचार्य श्री विपिन कृष्ण काण्डपाल जी- एक संक्षिप्त परिचय
यह भारत भूमि प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों, तपस्वियों और महान विभूतियों की भूमि रही है । जब-जब भी इस धरती पर किसी प्रकार का अनाचार या अत्याचार बढ़ा या धर्म की हानि हुई है तब तब भगवत कृपा से किसी न किसी पुण्य आत्मा ने इस पृथ्वी पर जन्म लेकर समाज में नई चेतना जागृत करने के लिये, सुसंस्कारित और सभ्य समाज बनाने के लिये, सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये, विश्व में धर्म और आध्यात्म के माध्यम से शान्ति, भक्ति व ज्ञान की ज्योति जलाई है जिससे मानव जीवन का कल्याण हुआ है।
जब बात बद्री-केदार देवभूमि उत्तराखंड की होती है तो इसके बारे में जितनी चर्चा की जाय उतनी ही कम है। हमारे धर्म शास्त्र पुराण कहते हैं कि यह हिमालय भूमि उत्तराखंड देवताओं की निवास स्थली रही है। इसके कण-कण, पग-पग पर देवता लोग निवास करते हैं । यह उत्तराखण्ड भूमि भगवान शिव की तपस्थली रही है । ऐसी मान्यता है कि भगवान् वेद व्यास ने इसी भूमि में विभिन् पुराणों की रचना की है, माँ भगवती गंगा/यमुना का उद्गम स्थान होने का गौरव भी इसी उत्तराखण्ड की भूमि को प्राप्त हुआ है । इसी बद्री-केदार देवभूमि उत्तराखंड के कथा वाचकों की सूची में आचार्य विपिन कृष्ण काण्डपाल जी का नाम आज एक जाना-पहिचाना नाम बन चुका है । श्रीमदभागवत महापुराण, श्री शिव महापुराण और देवी भागवत महापुराण के मर्मग्य कथा वाचक आचार्य श्री विपिन कृष्ण काण्डपाल जी का जन्म 14 अक्टूबर 1985 को गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिल्ले के अंतर्गत दशज्यूला पट्टी के ग्राम बैंजी काण्डई ग्राम में पंडित उमाशंकर शास्त्री/श्रीमती शशि देवी काण्डपाल जी के यहाँ हुआ ।
आचार्य श्री ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव की पाठशाला से ही प्राप्त की । दसवीं कक्षा उतीर्ण करने के बाद आपका झुकाव आध्यात्म और वेद-पुराणों की ओर बढ़ा और आपने इसी क्षेत्र में जाने का निर्णय किया । आपने जगद्गुरु ज्योतिषपीठ शंकराचार्य श्री माधवाश्रम जी महाराज के सानिध्य में उनके द्वारा संचालित विद्यालय में संस्कृत, ज्योतिष, कर्मकांड, पुराण आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया । तदुपरांत आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये दिल्ली आये और आपने शारदादेवी संस्कृत विद्यापीठ ( सम्पूर्णानन्द संस्कृत महाविद्यालय से मान्यताप्राप्त) संस्कृत व्याकरण में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की ।
एक ब्राह्मण कुल में जन्म लेने और पूर्वजों से मिले सुसंस्कारों के कारण ही स्कूली शिक्षा के दौरान धार्मिक कथा प्रवचनों में आपकी रूचि बढ़ने लगी थी जिसके कारण आपने आरम्भ से ही श्रीमदभागवत महापुराण पुराण, श्री शिव महापुराण और श्रीमद देवीभागवत का गहन अध्ययन अपने ताउजी श्री बच्चीराम काण्डपाल जी के सानिध्य में शुरू कर दिया था जो कि स्वयं में उस क्षेत्र के एक जाने-माने कथा वाचक थे । भगवतकृपा आप पर बरसती रही है और छोटी सी उम्र में ही आपने इन पावन धार्मिक पौराणिक ग्रन्थों के प्रवचनकार के रूप में महारथ हासिल कर दी । एक कथावाचक के रूप में आपने अपनी यह धर्म यात्रा अपनी बाल्यावस्था लगभग १८ साल की उम्र से शुरू कर दी थी । आप अभी तक देश के विभिन्न छोटे-बड़े शहरों में १५० से भी ज्यादा भागवत कथा/प्रवचन कर चुकें हैं ।
आचार्य श्री का एक मात्र उदेश्य अपने कथा प्रवचनों के माध्यम से हिंदू-धर्म, हिंदू धर्म की वैदिक एवं पौराणिक शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करना है । समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की सामाजिक बुराईयों को दूर करने के लिये लोगों को प्रेरित करना है । अपने कथा प्रवचनों में आचार्य विपिन कृष्ण काण्डपाल जी विभिन् प्रकार के सामाजिक विषयों को उठाते रहे हैं जिनमे मुख्यत: बेटी-बचाओ-बेटी-पढाओ, जलसंचय-जल संवर्धन, पर्यावरण संरक्षण, गो-सेवा, माता-पिता सेवा, दीन-दुखियों की सेवा आदि विषय रहे हैं । आचार्य श्री का कहना है कि यदि हमें अपनी आने वाली नस्ल (पीढ़ी) को भ्रष्टाचार मुक्त, बलात्कार मुक्त, भयमुक्त, रोगमुक्त और तमाम अन्य प्रकार के पापों से मुक्त बनाना है तो एक बार पुन: हमें वेदों, पुराणों और उपनिषदों की ओर वापिस लौटना होगा, तभी आने वाली पीढ़ी को हम एक सभ्य सामाजिक प्राणी बना सकते हैं ।
यदि आप भी आचार्य श्री के मुखारविंद से, आचार्य श्री के माध्यम से किसी सामाजिक कार्य हेतु श्रीमदभागवत महापुराण, शिव महापुराण या श्रीमद देवीभागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का अनुष्ठान करवाना चाहते हैं तो वेबसाइट में दिए गए नम्बरों पर संपर्क कर सकते हैं ।
जय श्री राधे....